राजस्थान में शिक्षा तंत्र गहरे संकट में: 69 हजार से अधिक पद रिक्त, वर्षों से लंबित पड़ी पदोन्नतियाँ, हजारों स्कूल बिना प्रधानाचार्य और व्याख्याता के संचालित
हनुमानगढ़,14 अप्रैल 2025- राजस्थान में शिक्षा की रीढ़ माने जाने वाले सरकारी स्कूल आज खुद असहाय नजर आ रहे हैं। राज्य के शिक्षा विभाग में हालात इस हद तक बिगड़ चुके हैं कि अध्यापक से लेकर प्रधानाचार्य स्तर तक 69,433 पद रिक्त पड़े हुए हैं। यही नहीं, वर्ष 2021 से लेकर 2026 तक के आठ शैक्षणिक सत्रों की पदोन्नति प्रक्रियाएं ठप पड़ी हैं। यह संकट न केवल शिक्षकों के मनोबल को प्रभावित कर रहा है, बल्कि इसका सीधा असर विद्यार्थियों की पढ़ाई, परीक्षा परिणामों और स्कूलों की साख पर भी पड़ रहा है।
पांच वर्षों से लंबित है वरिष्ठ अध्यापकों की पदोन्नति, तीन वर्षों से व्याख्याताओं की पदोन्नति भी रुकी
शिक्षा विभाग ने हाल ही में वरिष्ठ अध्यापक से व्याख्याता और व्याख्याता से प्रधानाचार्य स्तर तक की पदोन्नति प्रक्रिया की समीक्षा की है। रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2021-22 से लेकर 2025-26 तक के पाँच सत्रों में वरिष्ठ अध्यापकों को व्याख्याता पद पर पदोन्नति नहीं मिल सकी है। वहीं, 2023-24, 2024-25 और 2025-26 के तीन सत्रों में व्याख्याताओं को उप-प्रधानाचार्य या प्रधानाचार्य के पद पर पदोन्नति नहीं मिल सकी है।
यानी आठ संपूर्ण शैक्षणिक वर्षों तक योग्य शिक्षकों को उनका अगला हकदार पद नहीं मिल पाया, जबकि विभागीय आदेश और प्रमोशन लिस्टें कई बार तैयार भी की जा चुकी हैं।
शिक्षकों की भारी कमी से 6 हजार से अधिक स्कूलों में पढ़ाई ठप
राज्य के हजारों स्कूल ऐसे हैं, जहां विषय विशेषज्ञ शिक्षक ही नहीं हैं। करीब 6,000 माध्यमिक व उच्च माध्यमिक विद्यालयों में व्याख्याताओं की स्वीकृतियां तक नहीं हुई हैं। वहीं, 1,825 स्कूलों में तो प्रधानाचार्य तक का पद स्वीकृत नहीं है। इसका मतलब है कि ये स्कूल बिना नेतृत्व और व्यवस्थापन के चल रहे हैं, जिससे शैक्षणिक गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।
मई 2022 में शिक्षा विभाग ने करीब 834 स्कूलों को उच्च माध्यमिक स्तर पर क्रमोन्नत किया था, लेकिन अधिकांश स्कूलों में आज तक आवश्यक व्याख्याताओं की नियुक्ति नहीं हो पाई। इस वजह से विज्ञान, गणित, अंग्रेजी जैसे महत्वपूर्ण विषयों की पढ़ाई अधूरी है या ठप पड़ी है।
नामांकन में भारी गिरावट, स्कूलों पर ताले की नौबत
स्कूलों में शिक्षकों की अनुपलब्धता और पढ़ाई के स्तर में गिरावट का सीधा असर विद्यार्थियों की संख्या पर पड़ा है। कई जिलों के सरकारी स्कूलों में नामांकन में 15 से 25 प्रतिशत तक की गिरावट दर्ज की गई है। इससे शिक्षा विभाग के समक्ष स्कूल बंद होने का संकट उत्पन्न हो गया है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि जल्द ही रिक्त पद नहीं भरे गए और पदोन्नति प्रक्रिया को गति नहीं दी गई, तो अगले कुछ वर्षों में सरकारी स्कूलों में नामांकन में और बड़ी गिरावट हो सकती है।
शिक्षक संगठनों में नाराजगी, जल्द समाधान की मांग
राज्य के प्रमुख शिक्षक संगठनों ने सरकार से मांग की है कि वरिष्ठ अध्यापक व व्याख्याता के रिक्त 50 प्रतिशत पदों पर सीधी भर्ती तथा शेष पदों पर पदोन्नति के माध्यम से शीघ्र नियुक्तियाँ की जाएं। संगठन के पदाधिकारियों का कहना है कि यदि लंबे समय तक योग्य शिक्षकों को उनका पद नहीं दिया गया, तो इसका असर न केवल शिक्षक समाज पर पड़ेगा बल्कि विद्यार्थियों के भविष्य पर भी गहरा असर होगा।
राज्य शिक्षक संघ के प्रदेशाध्यक्ष ने चेतावनी दी है कि यदि आगामी महीनों में कोई ठोस कार्यवाही नहीं हुई, तो राज्यभर में आंदोलन की रणनीति बनाई जाएगी।
सरकार और शिक्षा विभाग की चुप्पी चिंता का कारण
दूसरी ओर, शिक्षा विभाग के उच्चाधिकारियों का कहना है कि पदोन्नति प्रक्रिया जटिल और समय लेने वाली है, लेकिन प्रयास किए जा रहे हैं। वहीं सरकार की ओर से इस मामले में कोई ठोस टाइमलाइन घोषित नहीं की गई है, जिससे शिक्षक वर्ग में असंतोष और अधिक बढ़ता जा रहा है।
रिक्तियों का आलम
आँकड़े चौंकाने वालेशिक्षा विभाग के नवीनतम आँकड़ों के अनुसार:
प्रधानाचार्य: करीब 6,000 पद खाली।
उप-प्राचार्य: 11,000 से अधिक पद रिक्त।
व्याख्याता: 21,000+ पदों पर भर्ती लंबित।
वरिष्ठ शिक्षक: 33,000 से ज्यादा रिक्तियां।
सहायक कर्मचारी: प्राथमिक और मिडिल स्कूलों में भी भारी कमी।
कई स्कूलों में एकमात्र शिक्षक ही प्राचार्य की जिम्मेदारी निभा रहा है। ग्रामीण क्षेत्रों में स्थिति और भी बदतर है, जहाँ कुछ स्कूलों में एक-दो शिक्षक पूरे स्कूल का संचालन कर रहे हैं।
पदोन्नति में देरी:
शिक्षक हताश शिक्षकों और व्याख्याताओं की पदोन्नति प्रक्रिया वर्षों से ठप है। कई कर्मचारी दशकों तक एक ही पद पर काम कर रहे हैं, जिससे उनका उत्साह कम हो रहा है। शिक्षक संगठनों ने इसे “विभागीय उदासीनता” करार देते हुए तत्काल कार्रवाई की माँग की है।गैर-शैक्षिक कार्यों का बोझशिक्षकों को जनगणना, बीएलओ ड्यूटी, और अन्य प्रशासनिक कार्यों में उलझाया जा रहा है। इससे शिक्षण कार्य प्रभावित हो रहा है और छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा नहीं मिल पा रही।
बजट की कमी:
बुनियादी सुविधाएँ नदारदप्राथमिक स्कूलों में सफाई कर्मचारियों के लिए कोई बजट नहीं है। उच्चतर माध्यमिक स्कूलों को सालाना मात्र 50,000 रुपये मिलते हैं, जो बुनियादी जरूरतों के लिए नाकाफी है। कई स्कूलों में बेंच-डेस्क, ब्लैकबोर्ड और शौचालय तक की कमी है।
प्रभाव:
बच्चों का भविष्य खतरे मेंशिक्षकों की कमी और संसाधनों के अभाव से सरकारी स्कूलों की गुणवत्ता गिर रही है। ग्रामीण क्षेत्रों में अभिभावक अपने बच्चों को निजी स्कूलों या ट्यूशन पर भेजने को मजबूर हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर स्थिति नहीं सुधरी, तो शिक्षा का स्तर और नीचे जाएगा।
सरकारी प्रयास:
नाकाफीहाल ही में सरकार ने 11,000+ उप-प्राचार्य पदों का सृजन किया, लेकिन यह संकट की गहराई के सामने बौना साबित हो रहा है। शिक्षक संगठनों ने भर्ती प्रक्रिया को तेज करने और पदोन्नतियों को नियमित करने की माँग की है।
आवाजें:
क्या कहते हैं लोग?
रमेश शर्मा, शिक्षक: “20 साल से एक ही पद पर हूँ। न पदोन्नति, न सम्मान। ऊपर से गैर-शैक्षिक काम थोपे जा रहे हैं।”
कविता मीणा, अभिभावक: “हमारे गाँव के स्कूल में सिर्फ़ एक शिक्षक है। बच्चे क्या सीखेंगे?”
डॉ. अनिल जोशी, शिक्षा विशेषज्ञ: “शिक्षा विभाग को नींद से जागना होगा। रिक्तियों और संसाधनों की कमी का सीधा असर बच्चों पर पड़ रहा है।”
आगे की राहशिक्षा विभाग को तत्काल कदम उठाने होंगे:रिक्त पदों पर पारदर्शी और तेज भर्ती।समयबद्ध पदोन्नति नीति।शिक्षकों को गैर-शैक्षिक कार्यों से मुक्ति।स्कूलों के लिए पर्याप्त बजट।शिक्षकों के प्रशिक्षण और प्रोत्साहन योजनाएँ।
निष्कर्ष
राजस्थान की सरकारी शिक्षा व्यवस्था इस समय एक महत्वपूर्ण मोड़ पर खड़ी है। यदि शिक्षकों की भारी कमी, लटकी पदोन्नतियाँ और प्रशासनिक निष्क्रियता पर शीघ्र ध्यान नहीं दिया गया, तो यह संकट और गहराएगा। राज्य सरकार को चाहिए कि वह जल्द से जल्द विशेष भर्ती अभियान चलाकर रिक्त पदों को भरे और अटकी हुई पदोन्नतियों को प्राथमिकता के साथ निपटाए, ताकि प्रदेश के लाखों विद्यार्थियों का भविष्य सुरक्षित हो सके।